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सांसारिक वृत्तियों को को त्याग कर वैराग्य भाव से तप करना ही तपस्या नहीं है। अपितु गृहस्थाश्रम की समस्त जिम्मेदारियों को वहन करते हुए सत्यनिष्ठा एवं सत्कर्म युक्त आचार , विचार , एवं व्यवहार से परिपूर्ण मानवीय संवेदना भाव से जीवन निर्वाह भी एक
तपस्या है। लोकहित एवं सर्व कल्याणकारी भाव मनुष्य को अन्य से श्रेष्ठ बनाता है। आचार विचार एवं व्यवहार की शुचिता एक सामान्य मनुष्य को भी तपस्वी की श्रेणी में ला देती है। जीवन संघर्ष में पलायनवादी भाव न लाकर संकटों से सामना करने का धैर्य एवं समस्याओं का समाधान खोजने का संकल्पित भाव एवं आत्मविश्वास व्यक्ति विशेष के चारित्रिक गुणों को दर्शाता है , एवं उसे कर्मनिष्ठ योगी बनाता है।
धन्यवाद !

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