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एक अबोध बालक**अरुण अतृप्त

स्वार्थ की नगरी है यहां सत्य की कौन सुनेगा ।।
तुम राह पकड़ना प्रेम की अव्यक्त मिलेगा ।।
इस दुनिया के जंजाल से कोई कोई मुक्ति पाता है ।।
ये तो निश्चित है ही भैया जो प्रभु चरणों मे रम जाता है ।।

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सत्य वचन धन्यवाद

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