Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings

इस विषय में मेरा कथन है कि धर्म के निर्वाह में विवेक एवं मानवीय संवेदना निहित कर्तव्य पालन का महत्व है। धर्म के निष्पादन में विवेकशील निर्णय लेकर पात्र एवं कुपात्र हितग्राही का चुनाव आवश्यक है। मानवीय संवेदना का आधार भावनात्मक अवश्य है परंतु धार्मिक कर्तव्य पालन से पहले निर्णय को तर्कों की कसौटी पर परखना धार्मिक कर्म को न्याय संगत एवं सर्व कल्याणकारी सार्थक बनाता है।
धन्यवाद !

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
Loading...