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प्रस्तुत रचना में मैंने निस्वार्थ सार्थक जीवन का सार व्यक्त करने की चेष्टा की है। हम में से अधिकांश लोग अपना संपूर्ण जीवन निजी स्वार्थ की तुष्टि में बिता देते हैं। और एक दूसरा वर्ग जिसने सब कुछ भौतिक सुख प्राप्त कर लिया है वह समस्त सुखों से विरक्त होकर अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है। एक तीसरा वर्ग जो जीवन की असफलताओं से निराश होकर जीवन से पलायन कर अध्यात्म की ओर मानसिक शांति की खोज में निकलता है। इस प्रकार का तथाकथित अध्यात्म का कोई प्रयोजन नहीं है।
मानवीय मूल्यों से युक्त निस्वार्थ सार्थक जीवन ही निर्वाह की परिणति है। यही मैंने स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है।

धन्यवाद !

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