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कहीं कोई विवाद की बात नहीं है।
पंत प्रकृति वादी कवि थे।
निराला और पंत छायावाद के प्रवर्तक भी थे।
इनकी हर रचनाएं हमेशा संदेशपूर्ण होती थी। निराला की तोड़ती पत्थर हो या भिक्षुक
समाज में एक अलग छाप छोड़ने वाली कविता है।
नागार्जुन की ज्यादातर रचनाएं अनुवादित होती थी,। क्यों की वो कई भाषाओं के जानकर थे।
इसी कारण उनकी भी रचना में छंद से मुक्ति देखने को मिलती थी।
और इन्होंने इस संदर्भ में छंद से मुक्ति की बात कही।
ना की इनलोगों ने कहा कि हर रचना छंद मुक्ति को हथियार बना कुछ भी लिखते जाओ।
उनका कहना यही था कि कविता कभी कभी छंदमुक्त भी हो सकती है।
ना की हमेशा छंदमुक्त ही हो सकती है।

मेरी उपर्युक्त कविता सिर्फ छंद के बारे में ही नही लिखी गई है।
इसी कारण कोई विवाद की बात नही है।

वैसे आपकी सुंदर समीक्षा के लिए धन्यवाद।?

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