मेरी कविता में भाव पक्ष के स्थान पर वस्तु पक्ष पर बल दिया गया है ।मेरी कविता सिर्फ मनोरंजन को केंद्र में रखकर नहीं लिखी गई है मेरी कविता समाज में जिन प्रश्नों की आज आवश्यकता है उन प्रश्नों को उठाया गया है । आप कृष्ण की भक्ति करते हैं किंतु कृष्ण की भक्ति करना ही एकमात्र ईश्वर की प्राप्ति नहीं है …. पुनः कह रही हूं कृष्ण की भक्ति करना ही एकमात्र ईश्वर की प्राप्ति नहीं है कृष्ण के आचरण के अनुरूप ढल जाना ही भक्ति है। समाज किस ओर जा रहा है खोखली खोखली बातें धर्म-कर्म का आडंबर यह क्या स्थापित करेंगे? राम की पूजा करना ही भक्ति नहीं है राम के आचरण स्वरूप खुद को ढालना भक्ति है । श्रीमान ! मेरी भक्ति की परिभाषा अलग है! और हां अगर आप कविता लिखिए और आलोचना ना हो तो कविता निष्प्राण जाती है मेरी कविताओं पर आलोचना होना आवश्यक है, समाज के लिए । क्योंकि आज समाज में इन्हीं प्रश्नों की आवश्यकता है। आप उठाइए कोई भी समाचार पत्र जहां पर आपको कृष्ण के अनुरूप आचरण करने वाले आज के युवा मिल जाए, आज के युवा मिल जाए, प्रवृतियां बदल रही हैं भक्ति के नाम पर जो ढोंग और पाखंड समाज में फैल रहा है। उस पर लगाम लगाएगा यदि आप और हम साहित्यकार पहले के साहित्यकारों की भांति अगर चिंता ना करें ,मानवीय संवेदनाओं को उजागर ना करें तो यह दायित्व किसके ऊपर है??
मेरी कविता में भाव पक्ष के स्थान पर वस्तु पक्ष पर बल दिया गया है ।मेरी कविता सिर्फ मनोरंजन को केंद्र में रखकर नहीं लिखी गई है मेरी कविता समाज में जिन प्रश्नों की आज आवश्यकता है उन प्रश्नों को उठाया गया है । आप कृष्ण की भक्ति करते हैं किंतु कृष्ण की भक्ति करना ही एकमात्र ईश्वर की प्राप्ति नहीं है …. पुनः कह रही हूं कृष्ण की भक्ति करना ही एकमात्र ईश्वर की प्राप्ति नहीं है कृष्ण के आचरण के अनुरूप ढल जाना ही भक्ति है। समाज किस ओर जा रहा है खोखली खोखली बातें धर्म-कर्म का आडंबर यह क्या स्थापित करेंगे? राम की पूजा करना ही भक्ति नहीं है राम के आचरण स्वरूप खुद को ढालना भक्ति है । श्रीमान ! मेरी भक्ति की परिभाषा अलग है! और हां अगर आप कविता लिखिए और आलोचना ना हो तो कविता निष्प्राण जाती है मेरी कविताओं पर आलोचना होना आवश्यक है, समाज के लिए । क्योंकि आज समाज में इन्हीं प्रश्नों की आवश्यकता है। आप उठाइए कोई भी समाचार पत्र जहां पर आपको कृष्ण के अनुरूप आचरण करने वाले आज के युवा मिल जाए, आज के युवा मिल जाए, प्रवृतियां बदल रही हैं भक्ति के नाम पर जो ढोंग और पाखंड समाज में फैल रहा है। उस पर लगाम लगाएगा यदि आप और हम साहित्यकार पहले के साहित्यकारों की भांति अगर चिंता ना करें ,मानवीय संवेदनाओं को उजागर ना करें तो यह दायित्व किसके ऊपर है??