Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings

सामाजिक परिपेक्ष में आए दिन जाति धर्म के नाम से इस वर्ग के लोगों पर अत्याचार एवं शोषण होता रहता है। और देश के चुने हुए प्रतिनिधि एवं बुद्धिजीवी मूकदर्शक बने इन सब अत्याचारों को सहन करने के लिए उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते हैं।
जातिवाद एवं धर्मांधता देश की जनता में विष
की तरह फैल कर देश में सांप्रदायिक एवं जातिगत सौहार्द को नष्ट कर रहा है।
राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए हमें गंभीरता से इस विषय में मनन करना आवश्यक है।
सर्वप्रथम हमें इसके मूल में जातिगत वैमनस्य एवं द्वेष की भावना को नष्ट कर मानवीय मूल्यों के आधार पर सामाजिक सौहार्द्र स्थापना करने के प्रयास करने होंगे। तभी हम मानवता पर आधारित धर्मनिरपेक्ष सहअस्तित्व की राष्ट्रीयता की भावना स्थापित करने के लिए सक्षम हो सकेंगे।
धन्यवाद !

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
Loading...