Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Aug 2021 03:24 PM

क्योंकि होती हैं मन की रफ़्तार !
ज़माने की रफ़्तार से कुछ ज़्यादा !
ये ज़माना जो मन के लिए ज़ालिम होता !
मन की तो कभी कुछ चलने ही नहीं देता !!
हवाएं चले तब दीप बुझे, ये समझ में आता है !
पर बिना हवा चले ही दीप क्यों बुझ जाता है ?
यदा – कदा तो दिल की बातें होंठों पे आती है !
पर बिन बयां किए ही पुनः दिल में दब जाती है !!
क्यों ये ज़िंदगी कभी इतनी बेरुखी ढ़ा जाती है !
बेवक्त ही दिन ढलकर शाम क्यों हो जाती है !!
आप बहुत ही सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति लिख जाती हैं !!

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
23 Aug 2021 11:04 PM

आप तो कमेंट्स में ही चार चाँद पिरो देते हैं। धन्यवाद?

23 Aug 2021 11:07 PM

धन्यवाद ?

Loading...