बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं… सुन्दर चित्रांकन
हिम्मत साथ नहीं देती है खुद के अंदर झाँक सके सबने खूब बहाने सोचे मंदिर मस्जिद जाने को
कैसी रीति बनायी मौला चादर पे चादर चढ़ती है द्वार तुम्हारे खड़ा है बंदा , नंगा बदन जड़ाने को
दूध कहाँ से पायेंगें जो, पीने को पानी न मिलता भक्ति की ये कैसी शक्ति पत्थर चला नहाने को
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बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं… सुन्दर चित्रांकन
हिम्मत साथ नहीं देती है खुद के अंदर झाँक सके
सबने खूब बहाने सोचे मंदिर मस्जिद जाने को
कैसी रीति बनायी मौला चादर पे चादर चढ़ती है
द्वार तुम्हारे खड़ा है बंदा , नंगा बदन जड़ाने को
दूध कहाँ से पायेंगें जो, पीने को पानी न मिलता
भक्ति की ये कैसी शक्ति पत्थर चला नहाने को