नब्ज तो पकड़ी पर रीढ़ पर वार करने से चूक गये। कविता विस्तार की चाह रखती है।
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वैसे तो विस्तार तो लेख में होता है , कविता तो रहस्यमय होती है ।
टिप्पणी के लिए आभार महोदय ।
नब्ज तो पकड़ी पर रीढ़ पर वार करने से चूक गये।
कविता विस्तार की चाह रखती है।