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आप की पेशकश से मुझे जिगर मुरादाबादी की
एक गज़ल याद आती है “साकी की हर निगाह पर बल खा के पी गया, लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया”
श़ुक्रिया !

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