नमक का दारोगा!
क्या आज के युग में ऐसे कर्मठ नोकर शाह की कोई कीमत है,खैरनार, खेमका, चतुर्वेदी, बहुत ज्यादा समय की बात नहीं है इनके द्वारा बर्ती गई इमानदारी को किसी राजनीतिक दल ने स्वीकारने का यत्न किया है! धर्म सिंह भंडारी जी तो विक्षुप्द तक करार दे दिये गये थे! आज के परिवेश में नमक का दारोगा बस एक प्रतीक भर है, इमानदारी का! बाकी तो इस मंडी में सब बिकने को तैयार बैठे हैं!
प्रसंग वस सत्य प्रसाद डोभाल जी आदर्श विद्यालय में सहायक अध्यापक थे, और वह अक्सर कहा करते थे कि आज वही ईमान दार है जिसे बेईमानी का अवसर नहीं मिला!तीस साल पूर्व उनकी यह रहस्य मयी बात अब खुब समझ में आ रही है! सादर अभिवादन श्रीमान जी।
नमक का दारोगा!
क्या आज के युग में ऐसे कर्मठ नोकर शाह की कोई कीमत है,खैरनार, खेमका, चतुर्वेदी, बहुत ज्यादा समय की बात नहीं है इनके द्वारा बर्ती गई इमानदारी को किसी राजनीतिक दल ने स्वीकारने का यत्न किया है! धर्म सिंह भंडारी जी तो विक्षुप्द तक करार दे दिये गये थे! आज के परिवेश में नमक का दारोगा बस एक प्रतीक भर है, इमानदारी का! बाकी तो इस मंडी में सब बिकने को तैयार बैठे हैं!
प्रसंग वस सत्य प्रसाद डोभाल जी आदर्श विद्यालय में सहायक अध्यापक थे, और वह अक्सर कहा करते थे कि आज वही ईमान दार है जिसे बेईमानी का अवसर नहीं मिला!तीस साल पूर्व उनकी यह रहस्य मयी बात अब खुब समझ में आ रही है! सादर अभिवादन श्रीमान जी।