Phoolchandra Rajak
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23 May 2021 06:30 AM
बहुत बहुत आभार आपका जी
पगड़ी! पगड़ी सिर्फ एक प्रतिक नहीं है इज्जत आबरू की, अपितु यह आवश्यकता है किसान के पसीने को पोंछने की, गरीब को ओढने की,धूप से सिर ढकने की, ठंड में नाक कान को समेटने की, लेकिन भौतिक वाद ने इसे अप्रसांगिक बना दिया, इसे धारण करने से हीनता बोध होने लगा और फिर यह पीछे छूट गया! लेकिन उसकी महत्ता बरकरार है, यह आज भी गांव कस्बे में नजर आ रही है। सादर अभिवादन रजक साहेब पुराने प्रतिकों का स्मरण कराने के लिए।