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मुझे अपने सच की राह पर चलना गुनाह सा लगने लगा , जबकि सच की राह पर चलना कोई कसूर नहीं है। यह एक एहसास है जो अक्सर सच की राह पर चलने वाले को वक्त की मार से होता है , जब चारों तरफ झूठ का बोलबाला हो।
शि’आर -ए-जीस्त का अर्थ ज़िंदगी का दस्तूर है। जिसमें हम चारों तरफ के झूठ के साथ जिंदगी को भोगते हैं। अतः ज़िंदगी में सच और झूठ दोनों शामिल है। केवल सच्चे बने रहने से जिंदगी नहीं चलती है।
धन्यवाद !

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