सर सबसे बढ़ी समस्या ही यही है कि हम।समाज को धर्म और भगवान से लोगों को डराते है ना कि इन तथ्यों को व्यवहारिक रखते।
हम लोगों को सिखाते हैं कि अपने अच्छे कर्मों को भगवान को सौप दो अन्यथा तुम पर घमण्ड हावी हो जाएगा। जबकि हमको सीखना चाहिए कि अच्छे कर्म मानवता के काम आते है और आपका कर्म मानवता को ख़त्म करता है, इसलिए जरूरी है कि मानवता और इंसानियत को बनाए रखो।
हम अपने हर सफल प्रयास को ईस्वर के नाम कर देते है जिससे समाज में नव निर्माण और वैज्ञानिकता का ह्वास होता है क्योंकि जो प्रोत्साहन चाहिए वह भगवान ले जाता है।
हमको सफलता के साथ साथ मानिविय नैतिकता को सीखना चाहिए जिससे घमण्ड,लालच,और स्वार्थ जैसी समस्या उत्पन्न ना हो।
और हिन्दू शास्त्रो के अनुसार ज्यादा तर राक्षस भगवान के बड़े पुजारी थे किंतु मानिविय नैतिक नही थे, इसलिए उन्होंने मानवता का ह्वास किया। जबकि वो अपने हर युद्ध पर जाने से पहले ईस्वर की प्रार्थना करते और अपना खून तक अर्पण कर देते थे, किन्तु इतनी भक्तिभाव होने के बाद भी वो मानवता का, इंसानियत का नाश करते थे क्योंकि वो मानिविय नैतिकता में विस्वास नही करते थे केवल ईस्वर की आस्था में ही विस्वास करते थे।
सर सबसे बढ़ी समस्या ही यही है कि हम।समाज को धर्म और भगवान से लोगों को डराते है ना कि इन तथ्यों को व्यवहारिक रखते।
हम लोगों को सिखाते हैं कि अपने अच्छे कर्मों को भगवान को सौप दो अन्यथा तुम पर घमण्ड हावी हो जाएगा। जबकि हमको सीखना चाहिए कि अच्छे कर्म मानवता के काम आते है और आपका कर्म मानवता को ख़त्म करता है, इसलिए जरूरी है कि मानवता और इंसानियत को बनाए रखो।
हम अपने हर सफल प्रयास को ईस्वर के नाम कर देते है जिससे समाज में नव निर्माण और वैज्ञानिकता का ह्वास होता है क्योंकि जो प्रोत्साहन चाहिए वह भगवान ले जाता है।
हमको सफलता के साथ साथ मानिविय नैतिकता को सीखना चाहिए जिससे घमण्ड,लालच,और स्वार्थ जैसी समस्या उत्पन्न ना हो।
और हिन्दू शास्त्रो के अनुसार ज्यादा तर राक्षस भगवान के बड़े पुजारी थे किंतु मानिविय नैतिक नही थे, इसलिए उन्होंने मानवता का ह्वास किया। जबकि वो अपने हर युद्ध पर जाने से पहले ईस्वर की प्रार्थना करते और अपना खून तक अर्पण कर देते थे, किन्तु इतनी भक्तिभाव होने के बाद भी वो मानवता का, इंसानियत का नाश करते थे क्योंकि वो मानिविय नैतिकता में विस्वास नही करते थे केवल ईस्वर की आस्था में ही विस्वास करते थे।