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14 Mar 2021 08:40 PM

“”विपन्नता””
वर्तमान में एक ऐसा नासूर बन चुका है जिस पर कवि लेखकों के अतिरिक्त किसी का ध्यान नहीं जाता।
कथनों वक्तव्य में लोग सहानुभूति जरूर बटोर लेते हैं पर आत्मिक लगाओ शायद उनके अंतरण में संभव नहीं है।
“”युवा वेतन साथी जब अभाव में अपना जीवन जीते हैं तो वह ऐसे कहीं मोड़ों पर भ्रमित हो जाते हैं जहां उन्हें होना न था पर क्या करें!
आप हम विचारों के माध्यम से तो उनकी विपन्नता उनकी दरिद्रता नहीं मिटा सकते इसके लिए निश्चित ही समाज में ऐसा ढांचा निर्मित करना पड़ेगा जो निस्वार्थ भाव से ऐसे विप्पन तरुण युवा साथियों का सहयोग कर उन्हें अपने वांछित लक्ष्य पर पहुंचा सके आपकी प्रस्तुति हृदय को छू गई धन्यवाद आभार आदरणीय।
प्रणाम।

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14 Mar 2021 11:38 PM

प्रोत्साहन का साधुवाद !

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