जैसे वरगद तरु अति विशाल, हरि हर जैसे पूजा जाता…
अति क्लांत श्रमिक या थकित पथिक, सुस्ताता आश्रय को पाता…
पर आँगन या गृह उपवन में बड़ होता तो स्वीकार नहीं…
मुझसे भी सब रिश्ते पोषित पर मुझे स्नेह प्रतिकार नहीं…
जिनके हित सब कुछ अर्पित, उनकी नज़रों में कर्कश हूँ….
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
छोटा कलमकार ही श्रीमान सीखने का प्रयास कर रहा हूं।
जैसे वरगद तरु अति विशाल, हरि हर जैसे पूजा जाता…
अति क्लांत श्रमिक या थकित पथिक, सुस्ताता आश्रय को पाता…
पर आँगन या गृह उपवन में बड़ होता तो स्वीकार नहीं…
मुझसे भी सब रिश्ते पोषित पर मुझे स्नेह प्रतिकार नहीं…
जिनके हित सब कुछ अर्पित, उनकी नज़रों में कर्कश हूँ….
मिथ्या कहते है सबल श्रेष्ठ, मैं पुरुष रूप में वरगद हूँ…
मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ, मैं वरगद हूँ…
छोटा कलमकार ही श्रीमान सीखने का प्रयास कर रहा हूं।