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कुछ ज़माने की बंदिशें हैं,
कुछ है मेरे दायरे ,
जब मुकद्दर ही बने दुश्मन तो कोई क्या करे ,
इस मुक़द्दर पर किसी क्या है आख़िर इख़्तियार,
हर किसी को ज़िंदगी में हासिल होता नही ये प्यार,
श़ुक्रिया !
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कृपया मेरी प्रस्तुति “प्रेम” का अवलोकन कर अपना मत प्रस्तुत करें !

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