कुछ थीं उनकी बंदिशे , कुछ थे मेरे दायरे , जब मुक़द्दर ही बने दुश्मन तो कोई क्या करे , श़ुक्रिया ! आप की पेश़कश को वोट कर दिया है ! मेरी पेश़कश “प्रेम” पर ग़ौर फरमाऐं और अपने नाय़ाब वोट से नवाज़े !
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जब मुक़द्दर ही बने दुश्मन तो कोई क्या करे ,
श़ुक्रिया !
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