उम्मीदों के सहारे पर खाली हाथ लौटना पड़े तो लगभग यही मनोदशा होती होगी, ऐसा मैंने अहसास किया है! रचना पढ़ने योग्य है, मेरी टिप्पणी से असहमत होने पर यदि बूरा लग जाए तो क्षमा कीजिएगा श्रीमान सतीश जी।
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उम्मीदों के सहारे पर खाली हाथ लौटना पड़े तो लगभग यही मनोदशा होती होगी, ऐसा मैंने अहसास किया है! रचना पढ़ने योग्य है, मेरी टिप्पणी से असहमत होने पर यदि बूरा लग जाए तो क्षमा कीजिएगा श्रीमान सतीश जी।