कृषि कानून और खरीद प्रक्रिया में जो झोल है उसे ठीक करने के आश्वासन के बाद स्वयं उससे पीछे हटना तो यही दर्शाता है कि जिन्होंने इस पर कदम नहीं उठाया था, वह ज्यादा होशियार रहे,रही बात किसान की तो उसने पहले कभी इतना समय निकालने का जोखिम लिया नहीं था, तो अब तक के सभी शासक यही मान बैठे थे कि थोड़ी बहुत चिल्ला कर चुप हो जाएंगे, लेकिन अनुमान गलत साबित हो रहा है! बाकी हालात भी ऐसे बन रहे हैं कि सरकार को या तो मानना पड़ेगा या फिर किसी तरह से भी संभव हो, किसान का मनोबल तोड़कर रख दिया जाए, थक-हारकर घर जाने को मजबूर कर देंगे! देखना बाकी है।
कृषि कानून और खरीद प्रक्रिया में जो झोल है उसे ठीक करने के आश्वासन के बाद स्वयं उससे पीछे हटना तो यही दर्शाता है कि जिन्होंने इस पर कदम नहीं उठाया था, वह ज्यादा होशियार रहे,रही बात किसान की तो उसने पहले कभी इतना समय निकालने का जोखिम लिया नहीं था, तो अब तक के सभी शासक यही मान बैठे थे कि थोड़ी बहुत चिल्ला कर चुप हो जाएंगे, लेकिन अनुमान गलत साबित हो रहा है! बाकी हालात भी ऐसे बन रहे हैं कि सरकार को या तो मानना पड़ेगा या फिर किसी तरह से भी संभव हो, किसान का मनोबल तोड़कर रख दिया जाए, थक-हारकर घर जाने को मजबूर कर देंगे! देखना बाकी है।