यही तो विडंबना रही है किसान की, वह किसान के रूप में सिर्फ एक उत्पादक तक ही सीमित रह गया है, जबकि अन्य सबने अपने महत्त्व को बार-बार रेखांकित किया है और उसका भरपूर लाभ उठाते आ रहे हैं, लेकिन किसान खेमों में बंटे रह गए,या संगठन की आवश्यकता ही नहीं समझी, और जो किसान संगठित होकर अपने हकों को उठाते रहे हैं वह उसका उपयोग कर भी रहे हैं, और वही आज सबको नेतृत्व भी प्रदान कर रहे हैं, किंतु उन्हें एक बनाए रखने में बहुत ऊर्जा की आवश्यकता है क्योंकि इन गरीबों के पास लम्बी लड़ाई लड़ने के संसाधन भी प्रर्याप्त नहीं होंगे, और वर्तमान परिवेश में उन्हें छोटे मोटे लोभ लालच देकर चुप कराने का कूटनीतिक खेल लगातार जारी है।
यही तो विडंबना रही है किसान की, वह किसान के रूप में सिर्फ एक उत्पादक तक ही सीमित रह गया है, जबकि अन्य सबने अपने महत्त्व को बार-बार रेखांकित किया है और उसका भरपूर लाभ उठाते आ रहे हैं, लेकिन किसान खेमों में बंटे रह गए,या संगठन की आवश्यकता ही नहीं समझी, और जो किसान संगठित होकर अपने हकों को उठाते रहे हैं वह उसका उपयोग कर भी रहे हैं, और वही आज सबको नेतृत्व भी प्रदान कर रहे हैं, किंतु उन्हें एक बनाए रखने में बहुत ऊर्जा की आवश्यकता है क्योंकि इन गरीबों के पास लम्बी लड़ाई लड़ने के संसाधन भी प्रर्याप्त नहीं होंगे, और वर्तमान परिवेश में उन्हें छोटे मोटे लोभ लालच देकर चुप कराने का कूटनीतिक खेल लगातार जारी है।