ज़िद और हठधर्मिता में संघर्ष आदिकाल से चलता आया है। कभी जिद के आगे हठधर्मिता हार जाती है।
तो कभी ज़िद अपने संघर्ष में हार कर प्राणों का उत्सर्ग करने से भी नहीं चूकती। यह ज़िद करने वाले की दृढ़ संकल्प शक्ति पर निर्भर करता है कि वह किस हद तक पूर्ति हेतु समर्पण भाव समाहित रखता है।
इसी प्रकार हठधर्मी अपने अंतर्निहित कठोरता से जिद के आगे ना झुकने का भाव रखता है। इस प्रकार के भाव विभिन्न कारकों पर निर्भर रहते हैं जैसे सत्यनिष्ठा, न्यायपरकता , सामयिक संदर्भ , वैचारिक मतभेद , व्यवस्था एवं व्यवहारिकता , मान्यताऐं ,कालखंड , व्यक्तिगत भावनाऐं , इत्यादि।
अतः इस प्रकार के अपरिमित संघर्ष की विवेचना करना अत्यंत दुरुह है।
ज़िद और हठधर्मिता में संघर्ष आदिकाल से चलता आया है। कभी जिद के आगे हठधर्मिता हार जाती है।
तो कभी ज़िद अपने संघर्ष में हार कर प्राणों का उत्सर्ग करने से भी नहीं चूकती। यह ज़िद करने वाले की दृढ़ संकल्प शक्ति पर निर्भर करता है कि वह किस हद तक पूर्ति हेतु समर्पण भाव समाहित रखता है।
इसी प्रकार हठधर्मी अपने अंतर्निहित कठोरता से जिद के आगे ना झुकने का भाव रखता है। इस प्रकार के भाव विभिन्न कारकों पर निर्भर रहते हैं जैसे सत्यनिष्ठा, न्यायपरकता , सामयिक संदर्भ , वैचारिक मतभेद , व्यवस्था एवं व्यवहारिकता , मान्यताऐं ,कालखंड , व्यक्तिगत भावनाऐं , इत्यादि।
अतः इस प्रकार के अपरिमित संघर्ष की विवेचना करना अत्यंत दुरुह है।
धन्यवाद !