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आपकी प्रस्तुति को मैंने अपने शब्दों में प्रस्तुत किया है , कृपया स्वीकार हो :

रुदादे दिल सुनाएं तो सुनाएं कैसे ? ,
जज़्बे तम़न्ना का इज़हार करूं तो करूं कैसे ? ,
ज़ेहन में बसी थी जो तस्वीर मुजस्सम क्यों नहीं होती ? ,
ख्व़ाबों में जो थी तस्वीर क्यों हक़ीक़त नहीं बनती ? ,
दिल से दिल के एहसास से रौश़न फ़ज़ाओं में ये तीरगी कैसी ? ,
दिल में उमड़ते हैं जज़्बात पर होठों पर ये चुप्पी
कैसी ? ,
उतार दो ये मुखौटे बनावटी मोहब्बत के ,
करा दो दीदार अपनी पाक चाहत के चेहरे के ,

श़ुक्रिया !

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