भौतिक विकास के जगत में मानवीय संवेदना का ह्रास हो रहा है। मनुष्य केआकलन के मापदंड उसके चरित्र एवं उसमें निहित गुणों के स्थान पर उसकी संपन्नता एवं पद हो गए हैं । स्वार्थपरता चरम सीमा पर है। साम दाम दंड भेद की नीति के उपयोग से मनुष्य अपना वर्चस्व सिद्ध करने मैं प्रयासरत है।
यह एक कटु सत्य है।
भौतिक विकास के जगत में मानवीय संवेदना का ह्रास हो रहा है। मनुष्य केआकलन के मापदंड उसके चरित्र एवं उसमें निहित गुणों के स्थान पर उसकी संपन्नता एवं पद हो गए हैं । स्वार्थपरता चरम सीमा पर है। साम दाम दंड भेद की नीति के उपयोग से मनुष्य अपना वर्चस्व सिद्ध करने मैं प्रयासरत है।
यह एक कटु सत्य है।
धन्यवाद !