मनुष्य के जीवन में खर्च का नजरिया उसकी आमदनी के हिसाब से जीवन पर्यंत बदलता रहता है।
उपभोक्ता प्रधान इस भौतिक जगत में जिन्हें हम भोग विलास की वस्तुएं समझते हैं वह धीरे-धीरे हमारी जरूरत है बन जाते हैं । आपस की देखा देखी की होड़ में भी इस प्रकार की प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलता है ।
मूलभूत आवश्यकताओं एवं सुविधाओं से मनुष्य को संतोष प्राप्त नहीं होता है और वह अधिक से अधिक भोग विलास की वस्तुएं एवं सुविधाएं जुटाने में अपना समस्त जीवन समर्पित कर देता है।
भोग विलास की सामग्री एवं सुविधाएं जब समाज में संपन्नता का मापदंड बन जाते हैं, तो इस लालसा से जनसाधारण अछूता नहीं रह सकता है।
मनुष्य के जीवन में खर्च का नजरिया उसकी आमदनी के हिसाब से जीवन पर्यंत बदलता रहता है।
उपभोक्ता प्रधान इस भौतिक जगत में जिन्हें हम भोग विलास की वस्तुएं समझते हैं वह धीरे-धीरे हमारी जरूरत है बन जाते हैं । आपस की देखा देखी की होड़ में भी इस प्रकार की प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलता है ।
मूलभूत आवश्यकताओं एवं सुविधाओं से मनुष्य को संतोष प्राप्त नहीं होता है और वह अधिक से अधिक भोग विलास की वस्तुएं एवं सुविधाएं जुटाने में अपना समस्त जीवन समर्पित कर देता है।
भोग विलास की सामग्री एवं सुविधाएं जब समाज में संपन्नता का मापदंड बन जाते हैं, तो इस लालसा से जनसाधारण अछूता नहीं रह सकता है।
धन्यवाद !