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सच और सच्चाई में फर्क होता है। परम सत्य का अस्तित्व नहीं है। जो दिखता है वह हमेशा सच नहीं होता। जिसे दिल मानता है वह भी हमेशा सच नहीं होता। सच्चाई परिस्थिति जन्य होती है। जिसको स्थापित करने के लिए प्रमाण एवं गवाह की आवश्यकता होती है। जिससे उसे तार्किक कसौटी पर सच साबित किया जा सके। न्याय प्रणाली एवं प्रक्रिया में सच्चाई का आकलन एवं निर्णय इसी पर आधारित रहता है।

धन्यवाद !

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6 Oct 2020 01:43 PM

सही फरमाया आपने…हृदय से आभार ?

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