डॉ साहब, आपमें मानवीय संवेदनाएं भरी पड़ी हैं, आपने जिस तरह इस दंपति को इतने सहज रूप में साकार किया है,यह कम ही होता है, हां यह हमारे पहाड़ पर यदा कदा है, अपितु सच कहूं तो पत्नी हो या पति, पिता हो या पुत्र-पुत्री, या भाई अक्सर ऐसा ही करते हैं, कभी उपचार के लिए तो कभी बैंक में आने-जाने के लिए, परिवहन से वंचित लोगों की यही व्यथा है जिसे वह ढो रहे हैं,सादर नमन।
डॉ साहब, आपमें मानवीय संवेदनाएं भरी पड़ी हैं, आपने जिस तरह इस दंपति को इतने सहज रूप में साकार किया है,यह कम ही होता है, हां यह हमारे पहाड़ पर यदा कदा है, अपितु सच कहूं तो पत्नी हो या पति, पिता हो या पुत्र-पुत्री, या भाई अक्सर ऐसा ही करते हैं, कभी उपचार के लिए तो कभी बैंक में आने-जाने के लिए, परिवहन से वंचित लोगों की यही व्यथा है जिसे वह ढो रहे हैं,सादर नमन।