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9 Aug 2016 12:55 PM

बहुत खूब ,,सही कहा अर्चना जी आपने

क ई. बार व्यक्ति समाज. मे तरह. 2
कि बिक्रीतियो का सामना करते करते पत्थर दिल हो जाता है, , लेकिन प्यार की प्रबल ओर निरंतर. बोछार उसे भिगोकर उसके सोच के तासीर को भी बदलने मे कामयाब. हो जाती है ,,,,लेकिन. ए आसान नहीं ,,,ओर,,असम्भव. भी नहीं

जो जीता ,, वही सिकन्दर

सत्यमेव जयते ।।।

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9 Aug 2016 05:48 PM

तहे दिल से आभार आपका रचना पसंद करने जे लिए

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