Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings

अब कहीं जी नहीं लगता दीवानगी इस कदर तारी है।
भटका भटका सा फिरता रहता हूं दिल भारी भारी है।

श़ुक्रिया !

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
Loading...