सुखविंद्र सिंह मनसीरत
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22 Jun 2020 09:38 PM
धन्यवाद
ज़ालिम ज़माने की फ़ितरत को मैंने जान लिया है।
दर्दे दिल को जज्ब़ कर मुस्कुराना सीख लिया है।
दिल के जख्म अमानत है जब से मैंने जाना है।
ज़माने में जख्म़ों का मुदावा ढूंढना छोड़ दिया है।
इश्क के कई दुश्मन इस ज़माने में बसते हैं।
हमेशा पाक मोहब्ब़त को रुस़वा करने की नापाक कोशिश में रहते हैं।
श़ुक्रिया !