कुतर्कों के माध्यम से गलत मंतव्यों को सही नहीं ठहराया जा सकता है।
महोदय !
कुतर्क और थोथी तो आप कर रहे हैं और न चाहते हुए भी लोगों को उकसा रहे हैं ! आप ‘मोदी चालीसा’, ‘लालू चालीसा’ आदि पर क्यों न कहते ? आपकी ‘असाहित्यिक’ मानसिकता को मैं समझ रहा हूँ, आप आडम्बरयुक्त धृष्ट व्यक्ति हैं !
यदि सत्य को कहना आडंबरयुक्त धृष्टता है एवं यथार्थ को प्रकट करना असाहित्यिक मानसिकता है। मैं सत्य पथ पर यह तथाकथित धृष्टता जारी रखूंगा। मुझे आप जैसे दंभी व्यक्ति से किसी प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है।
दंभी तो आप हैं, जो कि अनभिज्ञ होकर भी यूनिवर्सिटी खोल रखे हैं, प्रमाणपत्र बाँटने के लिए !
लगता है आप निम्न स्तर की मानसिकता से ग्रस्त हैं। जिससे आप व्यक्तिगत चरित्र हनन की चेष्टा तक उतर आएं है। मुझे अपने व्यवसाय का कितना ज्ञान है एवं मेरी योग्यता का आकलन आप जैसे निम्न स्तर के व्यक्तियों द्वारा नहीं किया जा सकता है।
सेम टू यू !
महोदय !
‘चालीसा’ साहित्यिक विधा है और ‘पैरोडी’ एक साहित्यिक प्रवृत्तियाँ है, जो कि नकल नहीं है । गिनती के 40 चौपाई के सम्मिलित रूप को चालीसा कहा जाता है, जिनमें दोहाएं तो उन चौपाइयों के परिचय व दो शब्द या प्रार्थना-मात्र हैं।
कवि मनोरंजन प्रसाद सिंह की ‘सब कहते हैं कुँवर सिंह तो बड़ा वीर मर्दाना था’ शीर्षक लंबी कविता कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान रचित ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली रानी थी’ शीर्षक कविता की पैरोडी नहीं थी। इन दोनों कविताओं का स्वतंत्र अस्तित्व है, तभी तो दोनों कविताएँ विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालयों की कक्षा-पाठ्यक्रमों में शामिल रही हैं।
‘कोरोना चालीसा’ में कोरोना से संबंधित तथ्यों के अतिरिक्त किसी भी बिम्बों को समाहित नहीं किया है, इसलिए यथाप्रसंग को ‘धार्मिकता’ से जोड़ना बगैर समझ लिए अतार्किकता ही कही जाएगी ! ‘कोरोना चालीसा’ विशुद्ध साहित्य है, उसे इसी लिहाज से पढ़िये/सुनिए और कोरोना कहर से बचने के लिए ‘फिजिकल डिस्टेंसिंग’ सहित सुरक्षित और संयमित जीवन अपनाइये ! हृदयश: आमीन।