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कवि सबकी प्रेरणा होता है,वह कभी जाति धर्म में नहीं बंटता बंधु!वो तो सबको एकता के सूत्र में बाँधना चाहता है

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हिन्दी साहित्य का सूक्ष्म पर्यवेक्षण करिये।अगर ऐसा नहीं होता तो दलित साहित्य व स्त्री विमर्श के साथ पिछड़े वर्ग के साहित्य की जरूरत पर बात नहीं होती।कुछ तो बात होगी।

बौद्धिक बईमानी से सबको बचना होगा।

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