अंजनीत निज्जर
Author
8 Jun 2020 09:09 AM
बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ Sirji, बहुत आभार??
आदमी बुलबुला है पानी का।
और पानी की बहती सतह पर
टूटता भी है डूबता भी है ।
फिर उभरता है, फिर से बहता है।
न समुंदर निगल सका इसको
न तवारीख़ तोड़ पाई है ।
वक़्त की हथेली पर बहता
आदमी बुलबुला है पानी का।
श़ुक्रिया !