किसी भी व्यक्ति का व्यवहार उसमें निहित संस्कारों से प्रभावित होता है। संस्कार परिवार में मां-बाप और बड़े-बूढ़ों द्वारा पोषित होते हैं जो उस व्यक्ति के जीवन पर्यंत आचार विचार एवं व्यवहार में परिलक्षित होते हैं। संस्कारी व्यक्ति कीचड़ मे कमल की भांति समाज मे व्याप्त बुराइयों से अप्रभावित रहता है। शिक्षा से ज्ञानार्जन एवं विश्लेषण प्रज्ञा शक्ति का विकास होता है। ज्ञान से अंधविश्वास, रूढ़िवादिता एवं तर्कहीन परंपराओं एवं मान्यताओं से निरापद स्वतंत्र विचारधारा निर्मित होती है। प्रज्ञा शक्ति का विकास तर्कसंगत निर्णय लेने मे सहायक होता है। शिक्षा से मानव सोच में परिवर्तन आता है।
आजकल शिक्षा का अर्थ ज्ञानार्जन नहीं अपितु एक अच्छी नौकरी प्राप्त करने का साधन बन गया है। अतः शिक्षित होने के मापदंड भी बदल गए हैं केवल अच्छे अंक प्राप्त कर डिग्री प्राप्त कर लेना ही विद्यार्थियों का लक्ष्य बनकर रह गया है। अतः शिक्षण संस्थान भी व्यापारिक संस्थान बन गए हैं।
इस प्रकार शिक्षा को मनुष्य के व्यवहार के लिए दोषी ठहराना उचित नहीं है अपितु उसके अंतर्निहित संस्कार ही उसके आचरण के दोषी हैं।
किसी भी व्यक्ति का व्यवहार उसमें निहित संस्कारों से प्रभावित होता है। संस्कार परिवार में मां-बाप और बड़े-बूढ़ों द्वारा पोषित होते हैं जो उस व्यक्ति के जीवन पर्यंत आचार विचार एवं व्यवहार में परिलक्षित होते हैं। संस्कारी व्यक्ति कीचड़ मे कमल की भांति समाज मे व्याप्त बुराइयों से अप्रभावित रहता है। शिक्षा से ज्ञानार्जन एवं विश्लेषण प्रज्ञा शक्ति का विकास होता है। ज्ञान से अंधविश्वास, रूढ़िवादिता एवं तर्कहीन परंपराओं एवं मान्यताओं से निरापद स्वतंत्र विचारधारा निर्मित होती है। प्रज्ञा शक्ति का विकास तर्कसंगत निर्णय लेने मे सहायक होता है। शिक्षा से मानव सोच में परिवर्तन आता है।
आजकल शिक्षा का अर्थ ज्ञानार्जन नहीं अपितु एक अच्छी नौकरी प्राप्त करने का साधन बन गया है। अतः शिक्षित होने के मापदंड भी बदल गए हैं केवल अच्छे अंक प्राप्त कर डिग्री प्राप्त कर लेना ही विद्यार्थियों का लक्ष्य बनकर रह गया है। अतः शिक्षण संस्थान भी व्यापारिक संस्थान बन गए हैं।
इस प्रकार शिक्षा को मनुष्य के व्यवहार के लिए दोषी ठहराना उचित नहीं है अपितु उसके अंतर्निहित संस्कार ही उसके आचरण के दोषी हैं।
धन्यवाद !