जयविंद सिंह जी, वोट डालने को जाते समय जब हम धर्म,जाति, संप्रदाय, ऊंच-नीच, के साथ सुरापान में डिगने को तैयार है तो फिर हमारी चिंता क्यों होगी, और रही बात अमीरों की तो चुनाव खर्च के लिए जो अपनी तिजोरी खोलके रख दें, तो छूट भी उसी को ही मिलेगी, गरीब की पैरवी करने वालोें को तो हमने संता तक पहुंचाया ही नहीं, जिन्होंने हमेशा गरीबों के हक को जीता है वह तो आज अप्रासंगिक हो गये हैं,
जिन्हें साम्यवादी दल कहा जाता था, उन्हें कभी ताकत ही नहीं दी है हमने, और देदी उन्है जो सपनों के सौदागर हैं, तब यही होना है।
जयविंद सिंह जी, वोट डालने को जाते समय जब हम धर्म,जाति, संप्रदाय, ऊंच-नीच, के साथ सुरापान में डिगने को तैयार है तो फिर हमारी चिंता क्यों होगी, और रही बात अमीरों की तो चुनाव खर्च के लिए जो अपनी तिजोरी खोलके रख दें, तो छूट भी उसी को ही मिलेगी, गरीब की पैरवी करने वालोें को तो हमने संता तक पहुंचाया ही नहीं, जिन्होंने हमेशा गरीबों के हक को जीता है वह तो आज अप्रासंगिक हो गये हैं,
जिन्हें साम्यवादी दल कहा जाता था, उन्हें कभी ताकत ही नहीं दी है हमने, और देदी उन्है जो सपनों के सौदागर हैं, तब यही होना है।