यह सच है कि विद्यालय के माध्यम से कई लोगों के गुजर बसर होते हैं, बहुत ऐसे भी शिक्षक, कर्मचारी ,ड्राइवर चपरासी जिनकी जीविका का आधार बस स्कूली पेमेंट ही हैं
यदि पेमेंट नहीं मिली तो उनका जीना कठिन ही नहीं असंभव हो जाएगा क्योंकि ऐसे शिक्षणसंस्था हैं जिनका कहना है ‘काम नहीं तो दाम नहीं ‘ किन्तु अपनी क्षुधा की अग्नि में बच्चों की आहुति दी जाए, यह भी कहीं से न्यायोचित नहीं है । हां !सरकार को उन कार्यरत लोगों के लिए कुछ अलग विकल्प देना चाहिए जिससे उनके घर में भी नमक -रोटी चलता रहे । इसके लिए काल के गाल में बच्चों को धकेलना न्यायसंगत नहीं है। बच्चे हमारे भी हैं, आपके भी । बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
साधुवाद!
यह सच है कि विद्यालय के माध्यम से कई लोगों के गुजर बसर होते हैं, बहुत ऐसे भी शिक्षक, कर्मचारी ,ड्राइवर चपरासी जिनकी जीविका का आधार बस स्कूली पेमेंट ही हैं
यदि पेमेंट नहीं मिली तो उनका जीना कठिन ही नहीं असंभव हो जाएगा क्योंकि ऐसे शिक्षणसंस्था हैं जिनका कहना है ‘काम नहीं तो दाम नहीं ‘ किन्तु अपनी क्षुधा की अग्नि में बच्चों की आहुति दी जाए, यह भी कहीं से न्यायोचित नहीं है । हां !सरकार को उन कार्यरत लोगों के लिए कुछ अलग विकल्प देना चाहिए जिससे उनके घर में भी नमक -रोटी चलता रहे । इसके लिए काल के गाल में बच्चों को धकेलना न्यायसंगत नहीं है। बच्चे हमारे भी हैं, आपके भी । बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
साधुवाद!