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27 May 2020 09:39 PM

कृतज्ञता मानव का दुर्लभ गुण है, परन्तु समाज के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण ।व्यक्ति दिन प्रतिदिन की जीवनचर्या में कितना अधिक प्रकृति का ऋणी है,इस बोध को हौले हौले से समझाया है ।
इस ऋण से उऋण होने हेतु मानव को भी निश्चल भाव से प्रकृति तथा प्राणि मात्र को अपनी सामर्थ्य के अनुसार लौटाना होगा इस तथ्य का किंचित भी संकेत दिये बिना भी कविता का मूल संदेश बना दिया है। कवियत्री का यह प्रयास सदा की तरह प्रशंसनीय है।
बधाइयां व शुभकामनाएँ

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27 May 2020 11:28 PM

बहुत बहुत धन्यवाद ji

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