आज सारी की सारी व्यवस्था बिकाऊ है दोषारोपण की राजनीति करना सरल है किंतु स्वयं अपने जमीर को जगाकर प्रजा के हित मे काम करना उतना ही मुश्किल जितना सरल ac वाले रूम में बैठ कर नीतियां बनाना उन लोगों को मजदूरों के हालात का क्या पता होगा जिसने कभी गाड़ी से निकलकर तपते सूरज की आग को महसूस ही नही किया
आज सारी की सारी व्यवस्था बिकाऊ है दोषारोपण की राजनीति करना सरल है किंतु स्वयं अपने जमीर को जगाकर प्रजा के हित मे काम करना उतना ही मुश्किल जितना सरल ac वाले रूम में बैठ कर नीतियां बनाना उन लोगों को मजदूरों के हालात का क्या पता होगा जिसने कभी गाड़ी से निकलकर तपते सूरज की आग को महसूस ही नही किया