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In reply to Jaikrishan Uniyal
11 May 2020 05:03 AM

जीवन के कुछ कटु अनुभव मनुष्य को इस प्रकार सोचने के लिए बाध्य करते हैं। जिस संवेदना की अपेक्षा हम रिश्तो से करते हैं , वह हमें नही मिलती। जबकि उनसे अधिक अनअपेक्षित संवेदना हमें गैरों में नज़र आती है। संकट की घड़ी में हमें गैरों पर निर्भर होना पड़ता है। रिश्ते औपचारिकता निभाना मात्र होकर रह जाते है।समाज मे रिश्तों की स्वार्थपरता हमें सालती है।

धन्यवाद !

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