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सिर्फ़ भावना को महत्व देना न्याय संगत नही ,इसमें कर्म का निवेश ज़रूरी है ।
कहते है शुभ कर्म स्वर्ग के दरवाजे का अदृश्य कब्जा है। निष्कर्ष यह कि पश्चिमी देशों में अधिकारों के प्रति अधिक जागरूकता दिखाई देती है, किंतु भारतीय संस्कृति में भाव पर ही अधिक बल दिया गया है। भारत अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रत्येक व्यक्ति द्वारा कर्तव्य पालन की प्रतीक्षा कर रहा है। यदि सभी अपने-अपने स्थानों पर नियत कर्म करते रहे तो यह धरती एक दिन जरूर स्वर्ग बन जाएगी।

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