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हमारी संस्कृति और विरासत का किसी भी आविष्कार के जनन और विकास में आड़े आने का प्रश्न नहीं है ।किसी भी खोज के लिए आधुनिक युग में वित्तीय प्रबंध की आवश्यकता होती है और इस हेतु शासन द्वारा बजट प्रावधान करना आवश्यक होता है। शासन बजट में प्रावधान प्राथमिकता के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में आबंटित करती है।
यहां तक कि अन्वेषण एवं विकास हेतु भी शासन बजट प्रावधान करती है। जिनमें में भी प्राथमिकता के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में अन्वेषण को वरीयता के क्रम में रखा गया है। किसी भी क्षेत्र में सतत् खोज के लिए एक बड़ी मात्रा में वित्त व्यवस्था आवश्यक है। अतः सरकार किसी एक क्षेत्र में खोज हेतु बड़ी मात्रा में वित्तीय आबंटन नहीं कर सकती।
जिन क्षेत्रों में अन्य देश अन्वेषण मे सक्रिय हैं , उन्हीं क्षेत्रों में खोज करने से पुनरावृत्ति की संभावना अधिक है। अतः केवल देश के शासन एवं वैज्ञानिक प्रतिभाओं को दोष देने से कुछ हासिल ना होगा।
हमें देश की वस्तुःस्थिति का आकलन करते हुए अपनी प्रज्ञा शक्ति से किसी निष्कर्ष पर पहुंचना होगा। केवल तर्कों के आधार पर निष्कर्ष पर पहुंचना न्यायोचित नहीं है।
जहां तक निजी क्षेत्रों का खोज में भागीदारी का प्रश्न है वह स्वेच्छिक है। जिसमें शासन का नियंत्रण नहीं है।

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