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जी सर ,सत्य के लगभग करीब ।जोड़ना चाहेगे कि हम महान है यह स्वभिमान है पर सबसे महान है यह अतिसंयोक्ति है क्योंकि वर्तमान में हम बहुत से क्षेत्रों में पीछे है,उनका वास्तविक आकलन भावनाओं से अभिभूत होकर नही करना ,तर्कसंगत न होगा ।
इसलिए भावना प्रधान के साथ साथ हमे तर्क प्रधान भी बनाना पडेगा,यह प्रगतिशीलता के मार्ग पर उद्भूत करेगा।

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