क्या ख़ता थी मेरी जो उनको जी भर के देखा तो जमाने ने सारे इल्ज़ाम हमारे सर कर दिए।
उन्होंने एक नज़र जो हमें देखा दिल बाग़-बाग़ हो गया वो जो मुस्कुराए तो हमारे अऱमानों को पंख लग गए।
महफिल में उनकी सरगोश़ियां उनके नमूदार होते ही थम गईं।
उनकी निगाहों के पैमाने का सुरुऱ इस क़दर था के पत्थर दिल भी मोम की तरह पिघल कर रह गए।
उनके हुस्ऩ ए मुजस्स़िम का ऩूर इस क़दर था के शहर के तमाम रसूख़दार ,अम़ीर और शरीफ़ज़ादे उनके ग़ुलाम बन कर रह गए।
वो एक ऐसी पहली थी जिसे तमाम दानिश़मंद मिलकर भी न सुलझा पाए।
उसके हुस्ऩ की तारीफ़ करते करते न जाने कितने ज़नाज़े उठ गए और कितने ज़माने बदल गए।
श़ुक्रिया !
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वाह जी वाह sir लाजवाब,please कुछ मेरी रचनायों के बारे कुछ कहिये खूबी मत बताइएगा सिर्फ कमी बताना pls
क्या ख़ता थी मेरी जो उनको जी भर के देखा तो जमाने ने सारे इल्ज़ाम हमारे सर कर दिए।
उन्होंने एक नज़र जो हमें देखा दिल बाग़-बाग़ हो गया वो जो मुस्कुराए तो हमारे अऱमानों को पंख लग गए।
महफिल में उनकी सरगोश़ियां उनके नमूदार होते ही थम गईं।
उनकी निगाहों के पैमाने का सुरुऱ इस क़दर था के पत्थर दिल भी मोम की तरह पिघल कर रह गए।
उनके हुस्ऩ ए मुजस्स़िम का ऩूर इस क़दर था के शहर के तमाम रसूख़दार ,अम़ीर और शरीफ़ज़ादे उनके ग़ुलाम बन कर रह गए।
वो एक ऐसी पहली थी जिसे तमाम दानिश़मंद मिलकर भी न सुलझा पाए।
उसके हुस्ऩ की तारीफ़ करते करते न जाने कितने ज़नाज़े उठ गए और कितने ज़माने बदल गए।
श़ुक्रिया !