इस कलयुग में मानवता के खत्म होते होते मनुष्य दानव में परिवर्तित होने लगा है। जिसका कारण संस्कार विहीनता, मानवीय मूल्यों का ह्रास, धन एवं सत्ता लोलुपता, भीड़ की मनोवृत्ति का विकास इत्यादि है। शासन तंत्र का पंगु बनकर मूकदर्शक होकर रह जानाअत्यंत क्षोभ एवं चिंता का विषय है।
शासन तंत्र प्रणाली में सुधार एवं इस प्रकार सामूहिक अपराधों में कठोर दंड के प्रावधान से इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृति ना हो यह सुनिश्चित करना होगा। किसी धर्म एवं वर्ग विशेष द्वारा प्रत्युत्तर में हिंसा को रोकना भी आवश्यक है । अन्यथा बदले की आग पूरे देश को अपनी चपेट में ले सकती है और देश में अस्थिरता का माहौल पैदा कर सकती है।
इस कलयुग में मानवता के खत्म होते होते मनुष्य दानव में परिवर्तित होने लगा है। जिसका कारण संस्कार विहीनता, मानवीय मूल्यों का ह्रास, धन एवं सत्ता लोलुपता, भीड़ की मनोवृत्ति का विकास इत्यादि है। शासन तंत्र का पंगु बनकर मूकदर्शक होकर रह जानाअत्यंत क्षोभ एवं चिंता का विषय है।
शासन तंत्र प्रणाली में सुधार एवं इस प्रकार सामूहिक अपराधों में कठोर दंड के प्रावधान से इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृति ना हो यह सुनिश्चित करना होगा। किसी धर्म एवं वर्ग विशेष द्वारा प्रत्युत्तर में हिंसा को रोकना भी आवश्यक है । अन्यथा बदले की आग पूरे देश को अपनी चपेट में ले सकती है और देश में अस्थिरता का माहौल पैदा कर सकती है।