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16 Mar 2020 05:18 PM

लय बद्ध गीत है जीवन का
अवरोह,आरोह क्रम अनेक….
फिर भर ले उड़ान ऊंची सी
पतझड़ में बसंत का संकेत….

स्निग्ध स्नेह से सिक्त शब्दो में आत्मीयता का सागर है, शिक्षक का ज्ञान है,ममता का आंचल है ।
जैसै किसी बहुत अपने को समझाया जा रहा है

सादर अभिनंदन

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16 Mar 2020 10:02 PM

जी धन्यवाद, ये खुद को ही समझाया जा रहा है

17 Mar 2020 07:52 AM

अपने से ज्यादा अपना कौन होगा ।
प्रतिक्रिया देने का एक लाभ भी है, आपकी सरस रचना के भावों को चुराकर मै भी तुकबंदी कर लेता हूँ।

सादर आभार

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