कस्तुरी कुंडल बसै,मृग ढूढ़ै वन माहि
नायाब पँछी तो आपके अंदर विराजमान काव्य प्रतिभा है जो भावों के अनुकूल पाठक जनों का मन मोह रहा है।
कस्तुरी कुंडल बसै,मृग ढूढ़ै वन माहि
नायाब पँछी तो आपके अंदर विराजमान काव्य प्रतिभा है जो भावों के अनुकूल पाठक जनों का मन मोह रहा है।