यह कैसा नशा है जो ज़ेहन पर तारी है । के इज़हार ए ग़म हरफ़ों मे नहीं सिमटता रहता जारी है।
श़ुक्रिया !
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यह कैसा नशा है जो ज़ेहन पर तारी है ।
के इज़हार ए ग़म हरफ़ों मे नहीं सिमटता रहता जारी है।
श़ुक्रिया !