अज़ीज़ इतना ही रखो के जी संभल जाए । इस क़दर भी न चाहो कि द़म निकल जाए ।
श़ुक्रिया !
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अज़ीज़ इतना ही रखो के जी संभल जाए ।
इस क़दर भी न चाहो कि द़म निकल जाए ।
श़ुक्रिया !