पं आलोक पाण्डेय
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30 Dec 2019 12:12 PM
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प्रकृति के प्रदूषित एवं नष्ट होते हुए स्वरूप तथा मानवीय मूल्यों के ह्रास एवं संस्कारविहीनता पर आपकी व्यथा एक मार्मिक प्रस्तुति है ।